बातों का रफूगर
कहते हैं एक बादशाह ने रफूगर रखा हुआ था, जिसका
काम कपड़ा रफू करना नहीं, बातें रफू करना था!!
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दरसल वो बादशाह की हर बात की कुछ ऐसी वज़ाहत करता के सुनने वाले सर धुनने लगते के वाकई बादशाह सलामत ने सही फरमाया,
काम कपड़ा रफू करना नहीं, बातें रफू करना था!!
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दरसल वो बादशाह की हर बात की कुछ ऐसी वज़ाहत करता के सुनने वाले सर धुनने लगते के वाकई बादशाह सलामत ने सही फरमाया,
एक दिन बादशाह दरबार लगाकर अपनी जवानी के शिकार की कहानी सुनाकर रियाया को मरऊब कर रहे थे,
जोश में आकर कहने लगे के एकबार तो ऐसा हुआ मैंने आधे किलोमीटर से निशाना लगाकर जो एक हिरन को तीर मारा तो तीर सनसनाता हुआ गया और हिरन की बाईं आंख में लगकर दाएं कान से होता हुआ पिछले पैर की दाईं टांग के खुर में जा लगा,
बादशाह को तवक़क़ो थी के अवाम दाद देंगे लेकिन अवाम ने कोई दाद नहीं दी,
वो बादशाह की इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे,
इधर बादशाह भी समझ गया ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी छोड़ दी.. और अपने रफूगर की तरफ देखने लगा,
रफूगर उठा और कहने लगा.. हज़रात मैं इस वाक़ये का चश्मदीद गवाह हूँ,
दरसल बादशाह सलामत एक पहाड़ी के ऊपर खड़े थे हिरन काफी नीचे था,
हवा भी मुआफ़िक चल रही थी वरना तीर आधा किलोमीटर कहाँ जाता है..
जहां तक ताअल्लुक़ है "आंख "कान और "खुर का, तो अर्ज़ करदूँ जिस वक्त तीर लगा था उस वक़्त हिरन दाएं खुर से दायाँ कान खुजला रहा था,
इतना सुनते ही अवाम ने दादो तहसीन के लिए तालियां बजाना शुरू कर दीं
अगले दिन रफूगर बोरिया बिस्तरा उठाकर जाने लगा..
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बादशाह ने परेशान होकर पूछा कहाँ चले?
रफूगर बोला बादशाह सलामत मैं छोटी मोटी तुरपाई लगा लेता हूँ, शामयाना सिलवाना हों तो किसी और को रखिये....
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बादशाह ने परेशान होकर पूछा कहाँ चले?
रफूगर बोला बादशाह सलामत मैं छोटी मोटी तुरपाई लगा लेता हूँ, शामयाना सिलवाना हों तो किसी और को रखिये....
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