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Friday, 20 November 2015

The Power Of Hope / आशा और उम्मीद की शक्ति


रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल
रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दूसरे से दिल की बात कर रही थीं।

>पहली मोमबत्ती बोली.... "मैं शांति हूँ", पर मुझे लगता है कि अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है, हर तरफ
आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती....।”
और ऐसा कहते हुए, 
कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।

>दूसरी मोमबत्ती बोली.... "मैं विश्वास हूँ, और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत
नहीं है, मैं भी यहाँ से जा रही हूँ ....”, और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

>तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली.... "मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर, लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं, मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ....” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।

दुनियावी ज़रूरत बनाम ख्वाहिशें / Needs Vs Wants Of The World

नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है
कि “चप्पल होते तो कितना अच्छा होता”
बाद मेँ……….
“साइकिल होती तो कितना अच्छा होता”
उसके बाद में………
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद में………
“मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ
रास्ता कट जाता”
फिर ऐसा लगा की………
“कार होती तो धूप नही लगती”
फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट