रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल
रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दूसरे से दिल की बात कर रही थीं।
रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दूसरे से दिल की बात कर रही थीं।
>पहली मोमबत्ती बोली.... "मैं शांति हूँ", पर मुझे लगता है कि अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है, हर तरफ
आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती....।”
आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती....।”
और ऐसा कहते हुए,
कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।
>दूसरी मोमबत्ती बोली.... "मैं विश्वास हूँ, और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत
नहीं है, मैं भी यहाँ से जा रही हूँ ....”, और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
नहीं है, मैं भी यहाँ से जा रही हूँ ....”, और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।
>तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली.... "मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर, लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं, मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं भी इस दुनिया से जा रही हूँ....” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।