ईदे-क़ुर्बाँ और क़ुर्बानी का महत्व -2
क़ुरबानी का उद्देश्य-
क़ुरआन में अल्लाह कहता है कि हमने इन्सान को जीवन इसलिए प्रदान नहीं किया कि वह जैसे चाहे इसे व्यतीत करे, बल्कि इसलिए प्रदान किया है कि वह देखना चाहता है कि इनमें अच्छे कर्म करनेवाला कौन है और बुरे कर्म करनेवाला कौन? (क़ुरआन 67:2) अब जो लोग ईश्वर के बताए मार्ग पर चलते और उसकी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करते हैं वे इस संसार को शान्तिमय बनाने में एक दूसरे का सहयोग करते हैं और जो लोग अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करते हैं वे स्वार्थी होते हैं जिससे धरती पर बिगाड़ और अत्याचार फैलता है। इस तथ्य के अनुसार ईश्वर के मार्ग पर चलनेवालों (मुस्लिम) और ईश्वर को न मानकर उसकी आज्ञा का उल्लंघन करनेवालों (काफ़िर) के मध्य कभी सामंजस्य नहीं बनता, बल्कि ये धरती पर बिगाड़ पैदा करनेवाले और अशान्ति फैलानेवाले (काफ़िर) लोग उन शान्तिदूतों को धरती से मिटाने का भरसक प्रयास करते हैं। इस सन्दर्भ में जो लोग अपने-आपको ईश्वर का आज्ञापालक और शान्ति का आवाहक (अर्थात मुस्लिम) कहते हैं उनका कर्तव्य है कि पहले तो उन ज़ालिमों को ईश्वर का आज्ञापालन करने के लिए प्रेम और सहानुभूति के साथ समझाएँ-बुझाएँ और धरती पर सलामती और शान्ति (इस्लाम) की स्थापना में अपनी भूमिका निभाने के लिए आमादा और तैयार करें। लेकिन यदि वो इस बात पर आमादा न हों और ज़ुल्म ही करते चले जाएँ तो फिर उनका मुक़ाबला करें और उनको ज़ुल्म और अत्याचार से रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास करें। क़ुरआन के अनुसार जो लोग ये संघर्ष करेंगे और इस काम के लिए अपना सब कुछ निछावर करने के लिए आमादा होंगे वे ईश्वर की निकटता प्राप्त करनेवाले होंगे।
अब जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि क़ुरबानी का अर्थ होता है निकटता प्राप्त करना। इसलिए दुनिया भर के मुसलमान ईदुल-अज़हा के अवसर पर विभिन्न जानवरों की क़ुरबानी करने को ईश्वर की निकटता का साधन समझते हैं। इस क़ुरबानी के द्वारा मुसलमान अपने रब की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए यह संकल्प लेते हैं कि वे ईश्वर के आदेशानुसार इस संसार में इस्लाम अर्थात शान्ति की स्थापना के लिए अपना सब कुछ क़ुरबान कर देंगे। यदि आवश्यकता पड़ी तो वे अपने रक्त की अन्तिम बूँद भी इस मार्ग में बहाने से पीछे नहीं हटेंगे। क़ुरबानी के इस विशेष एवं पवित्र कर्म को अंजाम देने से उनका उद्देश्य समाज में शान्ति की स्थापना के लिए कमरबस्ता होना तो होता ही है, ईश्वर का प्रेम और निकटता प्राप्त करना भी होता है। क्योंकि जो व्यक्ति जानवर को क़ुरबान करता है वह क़ुरआन के उस आदेश को अवश्य ध्यान में रखता है जिसमें अल्लाह कहता है कि
“न इन जानवरों का मांस हम तक पहुँचता है और न ख़ून, बल्कि सिर्फ़ तुम्हारा तक़वा (परहेज़गारी अर्थात ह्र्दय के भीतर मौजूद ईश-भय और ईश प्रेम) पहुँचता है।” (क़ुरआन 22:37)
अर्थात ईश्वर यह देखना चाहता है कि जब तुम जानवर को क़ुरबान कर रहे होते हो तो तुम्हारे हृदय में हमारे और हमारे आदेश (दीन) के प्रति कितना प्रेम है? यही वह भावना थी जो बाबा इबराहीम (अलैहि०) के दिल में थी।
तनिक विचार कीजिए कि जिस समय बाबा इबराहीम (अलैहि०) ने अपने बेटे इस्माईल (अलैहि०) की गर्दन पर छुरी रख दी थी और अपने जिगर के टुकड़े को क़ुरबान कर देने के लिए तैयार हो गए थे, तो उनके हृदय में क्या विचार रहा होगा? यही न कि ईश्वर की आज्ञा हो तो मैं अपनी सबसे क़ीमती चीज़ क़ुरबान कर दूँगा! क्या ईश्वर वास्तव में बेटे की क़ुरबानी चाहता था? नहीं! बल्कि वह तो एक परीक्षा थी जिसमें बाबा इबराहीम खरे उतरे। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे ईश्वर की प्रसन्नता की ख़ातिर अपनी हर चीज़ क़ुरबान कर देंगे। यह वास्तव में इतनी बड़ी क़ुरबानी थी कि इसे रहती दुनिया तक के लिए एक प्रतीक बना दिया गया। अतएव हर साल उसी दिन करोड़ों की संख्या में मुसलमान इस महान क़ुरबानी की याद ताज़ा करते हैं।
बाबा इबराहीम जब बेटे की क़ुरबानी कर रहे थे उस समय तो अल्लाह ने
बेटे को बचाकर उस महान क़ुरबानी को क़बूल कर लिया था। आज हम उसी क़ुरबानी को याद करते हैं लेकिन यह क़ुरबानी शुद्ध उसी समय होगी जब दिल में भावना वही हो जो बाबा इबराहीम (अलैहि०) के दिल में थी कि ईश्वर की प्रसन्नता (अर्थात समाज में इन्सानी भाईचारा और शान्ति की स्थापना) के लिए हम हर चीज़ (अर्थात अपनी योग्यताएँ, अपना समय अपनी दौलत यहाँ तक कि अपने जज़्बात और एहसासात तक) क़ुरबान कर देंगे।
स्पष्ट है कि अब प्रलय दिवस तक किसी मनुष्य से यह माँग नहीं की जाएगी कि वह अपने बेटे को उस तरह क़ुरबान करे जिस तरह बाबा इबराहीम क़ुरबान करने के लिए तैयार हो गए थे। लेकिन ईश्वर की मंशा वही है कि मेरा बन्दा मेरी प्रसन्नता के लिए ज़रूरत पड़ने पर अपना सब कुछ क़ुरबान करने के लिए तैयार हो जाए, यही है क़ुरबानी का वह वास्तविक उद्देश्य जिसे हर मुसलमान ही को नहीं बल्कि तमाम इन्सानों को आज समझने की ज़रूरत है।
Cont........
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