Sunday, 19 August 2018

Importance Of Bakrid / Eid al-Adha in Hindi Part-5

ईदे-क़ुर्बाँ और क़ुर्बानी का महत्व-5

भारतीय परम्परा और क़ुरबानी-
आइए अब भारतीय परम्परा पर भी तथ्यात्मक नज़र डालते हैं। हम देखते हैं कि जो कम्पनी गाड़ियाँ बनाती है वो हर गाड़ी के लिए अलग क़िस्म का fule टैंक बनाती है। कुछ गाड़ियाँ पेट्रोल से चलती हैं, कुछ गेस से, कुछ डीज़ल से और कुछ highly purified तेल से चलती हैं। और कुछ गाड़ियाँ गेस और पेट्रोल दोनों से चल जाती हैं। यदि ख़ालिस पेट्रोल से चलनेवाली गाड़ी में डीज़ल या मिट्टी का तेल भर दिया जाए तो गाड़ी चल ही नहीं पाएगी।
इसी तरह हम देखते हैं कि ईश्वरीय व्यवस्थानुसार जीव तीन प्रकार के होते हैं। शाकाहारी (Herbivorous); अर्थात जो शाक-सब्ज़ी खाते हैं। मांसाहारी (Carnivorous); अर्थात जो मांस खाते हैं और सर्वाहारी (Omnivorous); अर्थात जो शाक-सब्ज़ी भी खाते हैं और मांस भी। ईश्वरीय व्यवस्थानुसार जो जीव शाकाहारी हैं यदि उन्हें मांस खिला दिया जाए तो वे उसको पचा नहीं पाएँगे इसी प्रकार मांस खाने वाले जीव शाक-सब्ज़ी नहीं खा सकते। बकरी, गाय, भैंस इत्यादि शाकाहारी जीव हैं। यदि इनमें से किसी को मांस खिला दिया जाए तो या तो खा ही नहीं पाएँगे, यदि ज़बरदस्ती खिला दिया जाए तो पचा नहीं पाएँगे।इसी तरह शेर,चीता बाघ इत्यादि मांसाहारी जीव हैं यदि इन्हें मांस न दिया जाए तो ये ज़िन्दा नहीं रह पाएँगे।
इन सबमें मनुष्य सर्वाहारी (Omnivorous) प्राणी है यानी ईश्वर ने स्वाभाविक रूप से उसे ऐसा बनाया है कि वह चाहे तो मांस खा सकता है और शाक-सब्ज़ी भी। किन्तु शाक-सब्ज़ी में जिस प्रकार प्रत्येक हरी चीज़ मनुष्य नहीं खा सकता उसी प्रकार वह मांस भी हर प्रकार का नहीं खा सकता। स्पष्ट रूप से जिस तरह ईश्वर ने मनुष्य को यह बताया है कि शाक-सब्ज़ियों में से क्या खाना है और क्या नहीं खाना है, उसी प्रकार मांस में भी उसने बताया है कि कौन-सा मांस खाने योग्य है और कौन-सा खाने योग्य नहीं है। इस सम्बन्ध में ईश्वर ने मनुष्य को बाध्य नहीं किया है कि उसे केवल शाक-सब्ज़ी ही खानी है और न ही इस बात के लिए बाध्य किया है कि उसे मांस अवश्य ही खाना है। इसीलिए लाभप्रद वस्तुओं में से भोजन के रूप में वह क्या खाए और क्या न खाए उसका निजि फ़ैसला होता है। आप शाकाहारी हों या मांसाहारी यह आपका अपना फ़ैसला होना चाहिए न कि किसी का थोपा हुआ। मगर इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अपने देश में भोजन पर भी राजनीति शुरु हो जाती है। एक समूह के द्वारा मांस खाने वालों (विशेष रूप से एक ही समुदाय के लोगों) को निशाना बनाया जाता है, हालाँकि यह बात जान लेने की है कि दुनिया में आहार के रूप में सब से अधिक उपयोग मांस का ही किया जाता है। हिन्दू धर्म के मानने वालों में भी अधिकतर मांसाहारी है। हिन्दू धर्म में भी और इसके साथ-साथ दुनिया के सभी धर्मों में मांसाहार की अनुमति दी गई है और मांस को एक महत्वपूर्ण मानव आहार माना गया है, आजकल हिंदू भाइयों के यहाँ यह प्रसिद्ध हो गया है कि उनके यहाँ मांस खाने से रोका गया है, परन्तु यह न केवल प्रकृति और मानव स्वभाव के विरुद्ध है बल्कि अपने धर्म और अपने इतिहास से भी अनभिज्ञता है।

गांधी जी ने इस बात को स्वीकार किया है कि एक समय तक हिंदू समाज में पशु बलि और मांस ख़ोरी की प्रक्रिया आम थी। डॉ तारा चन्द के अनुसार वैदिक बलिदान में जानवरों के चढ़ावे भी हुआ करते थे

मनुस्मृति को ‘भारतीय धर्मशास्त्रों में सर्वोपरि शास्त्र’ होने का श्रेय प्राप्त है। इसके मात्र एक (पाँचवें) अध्याय में ही 21 श्लोकों में मांसाहार (अर्थात् जीव-हत्या) से संबंधित शिक्षाएँ, नियम और आदेश उल्लिखित हैं। इनका सार निम्नलिखित है:
1) ब्रह्मा ने मांस को (मानव) प्राण के लिए अन्न कल्पित किया है। ब्रह्मा ने यज्ञों की समृद्धि के लिए पशु बनाए हैं इसलिए यज्ञ में पशुओं का वध अहिंसा है।
2) भक्ष्य (मांसाहार-योग्य) और संस्कृत किया हुआ पशु-मांस ही खाना चाहिए।
3) अगस्त्य मुनि के अनुपालन में पशु-पक्षियों का वध किया जा सकता है।
4) देवतादि के उद्देश्य बिना वृथा पशुओं को मारने वाला मनुष्य उन पशुओं के बालों की संख्या के बराबर जन्म-जन्म मारा जाता है।

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि :
(i) आहार के रूप में मांस का उपयोग किया जा सकता है।
(ii) यज्ञ के लिए, श्राद्ध के लिए, और देवकर्म में, पशु वद्ध कोई हिंसा नहीं है।
(iii) पशुओं को व्यर्थ मारना पाप है।
(iv) पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ मनुष्य के आहार के लिए ही पैदा की गई हैं।

यही कारण है कि (बौद्ध-कालीन अहिंसा-आन्दोलन के समय, और उसके पहले) वैदिक सनातन धर्म में मांसाहार और यज्ञों के लिए पशु-वध का प्रचलन था। धर्म इसका विरोधी नहीं, बल्कि समर्थक व आह्वाहक था।
ऋग्वेद 10:86:14 में लिखा है-
“इंद्राणी द्वारा प्रेरित याज्ञिक मेरे लिए पन्द्रह या बीस बैल पकाते हैं। उन्हें खाकर मैं मोटा बनता हूँ।”
इसी प्रकार ऋग्वेद 10:28:3 में है कि-
“यजमान बैल का मांस पकाते हैं और तुम उसे खाते हो।”
(अनुवाद डॉ गंगा सहाय शर्मा, संस्कृत साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली)
सत्पथ ब्राह्मण में है कि जितने भी प्रकार के खाद्द अन्न हैं, उन सबमें मांस सर्वोत्तम है।
इसी तरह की शिक्षाएँ हमें अथर्ववेद: 32:1 से 4, 31:1 से 5, में भी मिलती हैं।
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