Dr. Nasir Amrohvi |
मैं तुझ को कॉल करता हूँ तो तू मसरूफ़ होती है
सो फिर मैसेज ये आता है
कहो!क्या बात करनी थी?
अरे पगली!
मुझे जो बात करनी थी
अगर वो बात मेसेज में ही लिख कर भेजनी होती
तो फिर मैं कॉल क्यूं करता
तुझे मैं कॉल करता हूँ तो कोई वजह तो होगी
वजह क्या है?
वजह ये है!
लगा है कानों को मेरे तिरी आवाज़ का चस्का
तिरा वो दिल नशीं लहजा मुझे मदहोश करता है
सो तुझ को कॉल करता हूँ
सो फिर मैसेज ये आता है
कहो!क्या बात करनी थी?
अरे पगली!
मुझे जो बात करनी थी
अगर वो बात मेसेज में ही लिख कर भेजनी होती
तो फिर मैं कॉल क्यूं करता
तुझे मैं कॉल करता हूँ तो कोई वजह तो होगी
वजह क्या है?
वजह ये है!
लगा है कानों को मेरे तिरी आवाज़ का चस्का
तिरा वो दिल नशीं लहजा मुझे मदहोश करता है
सो तुझ को कॉल करता हूँ
तिरी आवाज़ उतरती है मिरे कानों के रस्ते से
दिल ए नाज़ुक की गहराई में और फिर यूँ भी होता है
के वो आवाज़ मेरी रूह को तिसकीन देती है
सो तुझ को कॉल करता हूँ
दिल ए नाज़ुक की गहराई में और फिर यूँ भी होता है
के वो आवाज़ मेरी रूह को तिसकीन देती है
सो तुझ को कॉल करता हूँ
ख़ुदा वो दिन भी दिखलाए
के तू नम्बर लगाए अर
मिरा नम्बर न लग पाए
के तू नम्बर लगाए अर
मिरा नम्बर न लग पाए
-------------------------------------------------------
डॉ० नासिर अमरोहवी / Dr. Nasir Amrohvi
No comments:
Post a Comment