मनुष्य के जीवन में सत्य का बड़ा महत्त्व है। मनुष्य जब कोई ग़लत काम करता है या झूठ बोलता है तो उसे भी सत्य के रूप में ही प्रस्तुत करता है। यदि वह उसे सत्य के रूप में प्रस्तुत न करे तो झूठ चल ही नहीं सकता। एक पुरानी कहावत भी है कि झूठ के पाँव नहीं होते। अर्थात यदि झूठ को भी सत्य बनाकर प्रस्तुत न किया जाए तो लोग उसे स्वीकार नहीं करेंगे। इससे ज्ञात होता है कि सत्य में ही बल है। सत्य ही जीवन और जगत का आधार है। सत्य ही जीवन का व्यापार है। सत्य ही जीवन की तपस्या और उसका ध्येय है। कबीर दास जी ने भी कहा था :
साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ।
जा के ह्रदय साँच है, ता के ह्रदय आप ।।
हमारे जीवन में सच का उतना ही महत्व है, जितना कि सफलता पाने के लिए संघर्ष का है। जो व्यक्ति छोटी-छोटी बातों में सच्चाई को गम्भीरता से नहीं लेता उसपर बड़ी बातों में भी विश्वास नहीं किया जा सकता।
सत्य के सम्बन्ध में यह बात की बहुत दिलचस्प है कि यदि आप सच बोलते हैं तो आपको कुछ याद रखने की ज़रूरत नहीं रहती, याद रखने की ज़रूरत उसी समय पड़ती है जब हम असत्य का सहारा लेकर सत्य को छिपाने का प्रयास करते हैं. सत्य को किसी समर्थन की आवश्यकता नहीं होती वह बिना जनसमर्थन के भी खड़ा रहता है क्योंकि वह आत्मनिर्भर है। केवल असत्य को ही समर्थन की ज़रूरत होती है, सत्य तो अपने से खड़ा रह सकता है। यद्यपि आप अल्पमत में हैं किन्तु सत्य पर हैं तो बात आप ही की सर्वोपरि होगी। क्योंकि सत्य को मतों के समर्थन की भी आवश्यकता नहीं होती।
एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि कोई त्रुटी तर्क-वितर्क करने से सत्य नहीं बन जाती और न ही कोई सत्य इसलिए त्रुटी बन सकता है कि आपने उसे त्रुटि सिद्ध करने के लिए बहुत-से तर्क इकट्ठा कर दिए हैं।
ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सत्य बहुमूल्य रत्न है। सत्य के बिना संसार का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। सत्य के महत्त्व को दर्शाते हुए क़ुरआन में ईश्वर कहता है,
“इस धरती को और आकाशों को हमने सत्य के साथ पैदा किया।” (39 : 5)
मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वह परास्त नहीं होना चाहता हमेशा जीतना चाहता है। फिर जीतने के लिए उसे असत्य और झूठ को ही क्यों न अपनाना पड़े। किन्तु वह यह भूल जाता है कि जीत हमेशा सत्य की होती है। मुण्डक उपनिषद के मन्त्र 3.1.6 में कहा गया है
सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्।।
अर्थात अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। यही वह मार्ग है जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों) मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
(ज्ञात हो कि सत्यमेव जयते हमारे देश का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है.)
प्रोफ़ेट मुहम्मद (सल्ल०) ने कहा कि “सत्य नेकी की राह दिखाता है और नेकी स्वर्ग में ले जाती है।” (हदीस : बुख़ारी और मुस्लिम)
एक दूसरे स्थान पर कहा कि आपस में लेन-देन करने वाले दो व्यक्ति यदि सत्य से काम लें तो अल्लाह उनके कारोबार में तरक़्क़ी देता है।
ऊपर हमने देखा कि मनुष्य के जीवन में सत्य का कितना महत्त्व है। किन्तु हम देखते हैं कि मनुष्य के जीवन में सत्य का जितना महत्त्व है मनुष्य सत्य से उतना ही अनभिज्ञ है। मनुष्य को सत्य के जितना निकट होना चाहिए उतना ही वह उससे दूर है। असत्य और झूठ से जितना उसे दूर रहना चाहिए उतना ही वह उसमें लिप्त है। इसका कारण जो समझ में आता है कि वह यही है असत्य हमेशा सत्य के वेश में आता है और लोग उसको पहचान ही नहीं पाते। इसलिए आवश्यक है कि हरेक व्यक्ति यह जानने का प्रयास करे कि सत्य क्या है? उसकी पहचान क्या है?
आगे हमारा प्रयास होगा कि यह बताया जाय कि सत्य की पहचान क्या है.
Cont…..
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