एक दिल को छू लेनी वाली कविता बेटी पर -
एक-एक सांस उसके लिए कत्लगाह थी,
उसका गुनाह ये था कि वो बेगुनाह थी!
वो एक मिटी हुई सी इबारत बनी रही,
चेहरा खुली किताब था, किस्मत सियाह थी!
शहनाईयां-उसे भी बुलाती रही मगर,
हर मोड़ पर दहेज़ की कुर्बानगाह थी
वो चाहती थी कि रूह उसे सौंप दे मगर,
उस आदमी की सिर्फ बदन पर निगाह थी!
व्यथित ह्रदय से
No comments:
Post a Comment