दरगाह पर हाथ पर बिच्छू लेकर दिखाता अकीदतमंद |
इसके अनुसार, अरब देशों के वासित में जन्मे हजरत शाह विलायत (र.अ.) अपने पीर के हुक्म पर हिन्दुस्तान आए थे। हजरत शाह विलायत (र.अ.) के पीर ने उनसे कहा था कि हिन्दुस्तान में जहां आम-चावल की रोटी और रोहू मछली मिले वहीं अपना कयाम करना। ईरान, इराक होते हुए वह हिन्दुस्तान के मुल्तान शहर (अब अफगानिस्तान में) पहुंचे।
वहां से वर्ष 1262 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के अजीजनगर आए जहां उन्हें आम, रोहू मछली और चावल की रोटी मिली और वह यहीं ठहर गए। दरगाह प्रबंध समिति के मरगूब अहमद ने बताया कि हजरत शाह विलायत (र.अ.) ने ही अजीज नगर का नाम आम रोह रखा जो बाद में अमरोहा हो गया। किवदंतियों के अनुसार, हजरत शाह विलायत (र.अ.) जब यहां पहुंचे तो इसकी खबर पीर सैय्यद शाह नसीरूद्दीन को मिली।
शाह नसीरूद्दीन ने उनके पास पानी से भरा एक प्याला भेजा जिसमें एक फूल भी था। दरगाह से जुडे तारिक अजीम ने बताया कि प्याले में एक फूल रखने का मतलब था कि प्याले में एक ही फूल रह सकता है। दूसरे फूल की यहां जरूरत नहीं है, वह यहां से चले जाएं। अजीम ने बताया कि इस पर शाह मुस्कराए और प्याले में एक गुलाब का फूल डालकर कर भिजवा दिया। इसका मतलब था कि वह पानी में तैर रहे गुलाब की तरह रहेंगे और उनके प्रेम और भाईचारे की सुगंध चारों ओर फैल जाएगी।
इस पर शाह नसीरूद्दीन को गुस्सा आ गया और उन्होंने हजरत शाह विलायत को श्राप देते हुए कहा कि उनके चाराें ओर बिच्छुओं की भरमार रहेगी। इस पर हजरत शाह विलायत हजरत ने उत्तर दिया कि यही बिच्छू उनकी प्रसिद्धि का कारण बनेंगे। जुलाई 1381 में शाह विलायत का इंतकाल हो गया और उनक् कयाम के निकट कदीमी कब्रिस्तान में उन्हें दफना दिया गया।
वहां बिच्छुओं की भरमार हो गई। लगभग 634 वर्ष बीत जाने के बाद तब से लेकर आज तक दरगाह पर बिच्छुओं की तादाद कभी घटी नहीं। उनकी दरगाह पर अकीदतमंदों का मेला लगा रहता है। यहां आने वाले जायरीनों को बिच्छू काटते नहीं हैं। लोग बडे आराम से बिच्छुओं को अपनी हथेली पर रख लेते हैं। हजरत शाह विलायत (र.अ.) की दरगाह पर हर वर्ष चार दिनों का उर्स होता है जो अरबी महीने रजब की 18 तारीख से शुरू होकर उनके इंतकाल के दिन 21 रजब तक चलता है।
इस दौरान देश-विदेश, खासकर खाड़ी देशों के अकीदतमंद यहां हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। लोग बताते हैं कि वर्ष 1944 में अंग्रेजी फौजी अफसर ने भी यहां आकर बिच्छुओं को डंक न मारता देख अचम्भित रह गया। वर्ष 1915 में एक जर्मन पत्रकार मिसेज मुलथाप्ट ने भी अमरोहा आकर इस करामात को देखा परखा था। दरगाह से ताल्लुक रखने वाले एक शख्स ने बताया कि यहां प्रसिद्ध हस्तियां हाजिरी लगाने आती ही रहती हैं। फिल्मी सितारे और खिलाड़ी भी यहां हाजिरी लगाने आते हैं।
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