शहीद भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले 'भंगी' का नाम बोघा था।
भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे।
जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ ?
तब भगत सिंह कहता, "मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने।
बोघे में मैं अपनी बेबे(मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है"
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।
भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते,
"बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ।"
पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता
और कहता-
"भगत सिंह तू ऊँची जात का जाट_सरदार,
और मैं एक अदना सा भंगी,
भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर।"
सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे,
फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने
बोघे को कहा "बेबे अब तो हम चन्द दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!"
बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और फेर अपने हाथों से ही खिलाई।
और मित्रो भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी।
"ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया।
भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।
ऐसी सोच के मालिक थे अपने वीर सरदार भगत सिंह जी....
परन्तु आज की गन्दी सियासत ने जाति के नाम पर बाँटकर रख दिया उस महान शहीदे आजम के इस देश को,
मित्रो क्या सच मे हम लोग इतने बेईमान हो गए कि उस भगत सिंह की तस्वीर के नीचे बैठकर ही उसके सिद्धांतों और विचारों का बलात्कार कर रहे हैं,
हे ईश्वर मेरे इस मुल्क को सदबुद्धि देना, इसकी रक्षा करना !
जाे भगत सिंह का फैन है वाे शेयर जरूर करेगा
जय हिन्द
इंकलाब जिंदाबाद....
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