✍😳😢✍
कतारें थककर भी खामोश हैं,
नजारे बोल रहे हैं............
नदी बहकर भी चुप है मगर,
किनारे बोल रहे हैं...........
ये कैसा जलजला आया,
मुल्क में इन दिनों........
झोंपडी सारी खडी है और,
महल डोल रहे हैं............
परिंदों को तो रोज कहीं से,
गिरे हुए दाने जुटाने हैं......
परेशान वो हैं जिनके घरों में,
भरे हुए तहखाने हैं............
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