प्रीत सजे जब रंगों में
मोनालिसा मुस्काये
प्रीत सजे जब पत्थर पर तो
खजुराहो कहलाये
बिना प्यार के ताजमहल भी ताज नहीं है
इश्क़ कभी भी लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं है....
खामोशी में हूक प्यार की
कितना शोर मचाये
गीत-गजल मैं लिखूँ डायरी
मेरी भर-भर जाये
क्या होगा अंजाम पता आगाज नहीं है
इश्क़ कभी भी लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं है....
होंठ नहीं खुलते नैनों से
बातचीत हो जाये
डर है कुछ कह दूँ तो शायद
प्यार कहीं खो जाये
वैसे बिन बोले भी हममें कोई राज नहीं है दिव्य
इश्क़ कभी भी लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं है....
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Saturday, 15 October 2016
Hindi Poem
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