गौरी बचाओ / Save Girl
आज हमारे प्राचीन देश में गाय, गंगा और गौरी तीनों की स्थिति दयनीय है। गौरी अर्थात लड़की की स्थिति तो दिन पर दिन बदतर होती जा रही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण विवाह समारोह है।Save Girl Save World |
> जैसे ही बेटी है ऐसा पता चलते ही दहेज़ ना देना पड़े, लड़की वाले बन कर नाक ना रगड़ना पड़े, इसलिए उसे भ्रूण अवस्था में ही गिरा दिया जाता है।
> बेटी के पैदा होते ही उसके दहेज़ के लिए बचत शुरू कर दी जाती है। पर जिस समाज में दहेज़ नहीं दिया जाता वहां कोई परेशानी नहीं होती। उदाहरण के लिए मराठी परिवारों में दहेज़ मांगना बुरा समझा जाता है तो वहां लड़की के नाम से कोई दहेज़ नहीं जुटाया जाता ।
> कई घरों में लडकियां खुद ही तरह तरह की मांग करती है की शादी में मुझे गाड़ी मिले, कम से कम अमुक स्तर की शादी हो आदि पर शादी के समारोह में किया गया ये खर्च व्यर्थ होता है।
> उदाहरण के लिए कितना भी महँगा आमंत्रण पत्र क्यों ना हो बाद में वो रद्दी में ही जाता है, साथ में मिठाई का डिब्बा हो वो आखिरकार नौकरों को दे दिया जाता जाता है या फेंक दिया जाता है, क्योंकि ये मिठाई या तो बेकार होती है या इतनी मिठाई कोई खा नहीं पाता।
> संगीत में पुराने पारंपरिक गाने ना गा कर फ़िल्मी गानों पर भोंडा नृत्य किया जाता है जिससे महिलाओं के लिए गन्दी भावनाएं उपजती है।
> शादियों में कुछ ज़्यादा ही मेकअप और पार्लर पर खर्च किया जा रहा है। कई महिलाएं तो रोज़ मर्रा ही मेकअप लगाने लगी है जैसे की वे शो बिज़ में हो। इस सब से महिलाओं को शोभा की वस्तु माना जाने लगा है. हम जैसे है हमें प्रेम करने वाले वैसे ही पसंद करते है।
> कई शादियों में भोंडे फ़िल्मी संगीत जोर जोर से डिजे पर बजाये जाते है। कई परिवारों में बाईजीयों को गाने के लिए बुलाया जाता है। ये नारी जाती का अपमान है.ऐसी किसी प्रथा को घर परिवार में बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए।
> कई जगह वर पक्ष के दहेज़ को मना कर देने पर कन्या पक्ष के लोग चिढ जाते है और गलत व्यवहार करते है।
> हम सादगी पूर्ण वैवाहिक समारोह को अपना कर नारी की स्थिति बेहतर बना सकते है। विवाह समारोह परिवार को एकत्र करने का सहज माध्यम होना चाहिए ना की दिखावे और वैभव प्रदर्शन का असहज आडम्बर
> जहाँ एक तरफ हम समाज में नारी के प्रति असम्मान और अपराध के बढ़ने का रोना रोते हैं वहीँ दूसरी तरफ जब भी कोई मौका किसी नयी परंपरा के शुरू करने का मिलता है तो पीछे भी नहीं हटते।
> आज जिन आडम्बरों और रिवाजों को समाज में नारी का स्तर गिराने के लिए जिम्मेवार ठहराया जाता है, कल वह हम सबने ही हँसते- हँसते शुरू किये थे।
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