Wednesday, 25 November 2015

Benefits Of Piper Longum / पीपल (पिप्पली) के औषधीय लाभ

पीपल (पिप्पली) Long pepper / Piper Longum In Ayurveda

     जैसे हरड़-बहेड़ा-आंवला को त्रिफला कहा जाता है, वैसे ही सोंठ-पीपल-काली मिर्च को 'त्रिकटु' कहा जाता है। इस त्रिकटु के एक द्रव्य 'पीपल' की जानकारी इस प्रकार है।
Piper Longum / पीपल (पिप्पली)
Piper Longum / पीपल (पिप्पली)

     पीपल को पीपर भी कहते हैं, यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है, जिनमें से छोटी ज्यादा गुणकारी होती है और यही ज्यादातर प्रयोग में ली जाती है।

     विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पिप्पली। हिन्दी- पीपर, पीपल। मराठी- पिपल। गुजराती- पीपर। बंगला- पिपुल। तेलुगू- पिप्पलु, तिप्पली। फारसी- फिलफिल। इंग्लिश- लांग पीपर ( Long pepper ) । लैटिन- पाइपर लांगम ( Piper Longum )।
गुण : यह पाचक अग्नि बढ़ाने वाली, वृष्य, पाक होने पर मधुर रसयुक्त, रसायन, तनिक उष्ण, कटु रसयुक्त, स्निग्ध, वात तथा कफ नाशक, लघु पाकी और रेचक (मल निकालने वाली) है तथा श्वास रोग, कास (खांसी), उदर रोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात नाशक है।

     कच्ची अवस्था में यह कफकारी, स्निग्ध, शीतल, मधुर, भारी और पित्तशामक होती है, लेकिन सूखी पीपर पित्त को कुपित करती है। शहद के साथ लेने पर यह मेद, कफ, श्वास, कास और ज्वर का नाश करने वाली होती है। ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है। पीपल के चूर्ण की मात्रा से ग़ुड की मात्रा दोगुनी रखनी चाहिए।

     रासायनिक संघटन : इसमें सुगन्धित तेल (0.7%), पाइपरीन (4-5%) तथा पिपलार्टिन नामक क्षाराभ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त दो नए तरल क्षाराभों का भी इसमें पता चला है, जिनके नाम सिसेमिन और पिपलास्टिरॉल हैं। पीपर की जड़ (पीपला मूल) में पाइपरिन (0.15-0.18%), पिपलार्टिन (0.13-0.20%), पाइपरलौंगुमिनिन, एक स्टिरायड तथा ग्लाइकोसाइड पाए जाते हैं।

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